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"कामिनी एक अजीब दास्तां"।

कामिनी भाग ९


कामिनी और रात्रि व्यापारियों के साथ सिंधु देश के लिए निकल पढ़ती है, वह सूर्योदय होते ही नगर के बाहर तक पहुंच जाती है।
एक व्यापारी कामिनी की अद्भुत सुंदरता को देखकर रात्रि से पूछता है।

"यह अति सुंदर कन्या कौन है"? "इसके मुखमंडल में स्वर्ण जैसी चमक है और इसके वस्त्र और आभूषण राजकुल जैसे प्रतीत होते हैं"।

यह सिंधु देश के महामंत्री की पुत्री कामिनी है, अपने ननिहाल हिम प्रदेश आई थी, दुर्भाग्यवश! "अपने सेवकों से भटक गई और कामपुर आ गई, महामंत्री से तुम सभी व्यापारियों की प्रशंसा करके तुम सबको अमूल्य उपहार दिलवाउंगी बस तुम सभी सिंधुदेश पहुंचने में हमारी सहायता करो"। रात्रि ने लोभ देते हुए उस व्यापारी से कहा।

"उपहार का कोई मोह नहीं है, महामंत्री की पुत्री पूरे सिंधु देश की पुत्री है, तुम्हारी सहायता करना हमारा धर्म है, हम अपने प्राणों का बलिदान दे देंगे पर तुम पर तनिक भी आंच ना आने देंगे"। दूसरे व्यापारी ने भरोसे के साथ कहा।

"आगे कहानी 6 दिन बाद"

इन 6 दिनों में रात्रि और कामिनी ने व्यापारियों के साथ आधी यात्रा पूर्ण कर ली है, इन बीते 6 दिनों में इन व्यापारियों ने इन दोनों युवतियों से कोई दुर्भावनापूण व्यवहार तो नहीं किया पर यह कामी व्यापारी प्रतिदिन और हर क्षण नेत्रों से इन दोनों के साथ व्यभिचार करते हैं, पर महामंत्री के भय के कारण यह विवश है, इन 6 दिनों में इन दोनों युवतियों ने स्नान तक नहीं किया है, इनके वस्त्रों से भयंकर दुर्गंध आ रही है इनके सुंदर शरीर पर यात्रा की पसीने से मेल की परत जम गई है।

फिर वह सभी लीलापुर गांव के समीप नदी किनारे एक पेड़ के नीचे ठहरते हैं तब एक व्यापारी कहता है - "हम मेहला नदी के किनारे आ गए हैं, इस नदी को पार करने के बाद हमें यात्रा करने के लिए उचित मूल्य पर बैलगाड़ी या घोड़ा गाड़ी मिल जाएगी, हमें रात्रि होने से पहले यह नदी पार करना है, मैं, गांव जाकर नाव चालक को लाता हूं"।

कुछ देर बाद वह 5 व्यापारी भी आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी का कहकर वहां से चले जाते हैं, शाम होने को आई है पर वह 6 व्यापारी अब तक लौटकर नहीं आए हैं,
उन सभी व्यापारियों की अनुपस्थिति में कामिनी, रात्रि से कहती है -"मेरे वस्त्रों से भयंकर दुर्गंध आ रही है और पसीने के मेल से पूरा शरीर चिपचिपा रहा है, सामने नदी है, मैं स्नान कर लेती हूं"।

"हमारे शरीर की यह दुर्गंध और हमारे शरीर की कुरूपता हमारी रक्षा करेगी बस कुछ दिन और सहन कर लो फिर मैं, तुम्हें सिंधु देश के निर्मल जल में स्नान कर आऊंगी"। चतुर रात्रि ने कहा

"हमने कठिन यात्रा पूर्ण कर ली है, अब नदी को पार करके हम उचित मूल्य पर वाहन ले लेंगे फिर हमें सिंधुदेश तक कोई समस्या नहीं होगी, मैं जा रही हूं स्नान करने, तुम्हें आना हो तो आ जाओ"। यह कह कर कामिनी नदी की ओर बढ़ती है

"रात्रि, कामिनी को रोकने का प्रयास करती है पर मनचली कामिनी उसकी एक नहीं मानती और नदी में कूद पड़ती है।
कामिनी नदी में बड़ी प्रसन्नता से स्नान कर रही है और रात्रि उसकी चौकीदारी कर रही है, तभी अचानक नशे में धुत वह छः व्यापारी न जाने कहां से एक साथ आ जाते हैं और कामिनी को स्नान करते देख एक व्यापारी कहता है
-
"जरा गौर से देखो मित्रों"! "यह सुंदर युवती सिंधु देश के महामंत्री की पुत्री नहीं, अपितु कोई गणिका पुत्री है, इसकी पीठ पर कामुक चित्र अंकित है, अर्थात यह गणिका है, इन्होंने इनकी पहचान छुपाकर हमसे छल किया है, चलो, अब इन दोनों कुमारियो के सुंदर योवन से हम भी छल करते हैं"।

उस व्यापारी के यह व्यवहारिक शब्दों को सुनकर रात्रि अपनी चतुर्ता से विषैला खंजर उस व्यापारी के गले में घोंप देती है और कहती है -"इस खंजर पर कालसर्प का विषैला, विश लगा है, अगर इस खंजर से तुम्हारे शरीर पर तनिक भी चोट आई तो, अपने प्राणों को खो दोगे, अगर मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो नीचे पड़े अपने मित्र की दशा देख लो"।

वह पांचों व्यापारी भयभीत अवस्था में अपने मित्र को देखते हैं जिसके मुख से विष के झाग निकल रहे हैं और वह तड़प रहा है।
फिर रात्रि कामिनी से कहती है -"नाव की रसिया खोल दो और उसमें बैठ जाओ"।

कामिनी बिना समय गवाएं नाव की रस्सी खोलने लगती है और उधर धीरे-धीरे रात्रि अपने कदम नाव की और बढ़ाती है, यह पांचो कामुक व्यापारी इन दोनों युवतियों को अपने से दूर जाता देख और अपने उत्तेजित अरमानों पर पानी फिरता देख, बड़े व्याकुल हो उठते हैं और तरह-तरह के प्रलोभन देकर इन दोनों को रिझाने का प्रयास करते हैं पर प्रतिदिन रानीयो जैसा सुख भोगने वाली इन दोनों सखियों पर इन व्यापारियों के प्रलोभन का कोई प्रभाव नहीं होता। कामिनी नाउ में तैयार बैठी है, उसे, बस रात्रि का, नाव में बैठने का इंतजार है, रात्रि सावधानीपूर्वक धीरे धीरे नदी के किनारे बढ़ रही है, जब रात्रि नदी के निकट आ जाती है तब एक व्यापारी एक पत्थर उठाकर रात्रि की ओर फेंकता है और दुर्भाग्यवश वह पत्थर रात्रि के सिर पर लगता है, जिस कारण रात्रि वहीं गिर पड़ती है ।
फिर वह पांचों व्यापारी भागते हुए घायल रात्रि के निकट आते हैं पर उसे छूते नहीं हैं, क्योंकि अभी उसके हाथों में वह विषैला खंजर है, इसी भय के कारण एक व्यापारी दूर से एक पत्थर उठाकर रात्रि के खंजर वाले हाथ पर निशाना साधता है पर उसके निशाना साधने से पहले ही रात्रि अपने हाथ का खंजर उस पत्थर लिए व्यापारी पर दै मारती है और वह खंजर सीधा उसके हृदय में जा गढ़ता है।
अपने दो मित्रों की हत्या से वह चार व्यापारी और क्रोधित होते हैं और रात्रि की ओर दुर्भावपूर्ण भाव से बढ़ते हैं।
तब घायल रात्रि अपनी सखी कामिनी से कहती है

"तुम यहां से जाओ कमीनी"! "अब तुम्हारा यहां एक क्षण भी ठहरना उचित नहीं है"।

तभी एक व्यापारी कामिनी से कहता है -"अरे मूर्ख कन्या"! "अपनी सखी को इस दशा में छोड़कर जाना उचित नहीं है, इसे तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है, जिस सखी ने तुम्हारे योवन को बचाने के लिए अपने प्राणों को और अपने स्वयं के सुंदर योवन को दांव पर लगा दिया, उससे छल मत करो, हम चार पुरुष हैं और यह एक नव युवती है, हम चार कामुक पुरुषों की वासना शांत करने में इसे बड़ा कष्ट होगा, तुम आकर इसकी भागीदारी बन जाओ, ताकि इसे अधिक पीड़ा ना हो, अगर तुमने हमारी बात मान ली तो हम, हमारे दोनों मित्रों की हत्या का प्रतिशोध भूल जाएंगे और तुम दोनों को जीवन दान देंगे, लौट आओ सुंदरी और अपनी सखी की सहायता करो"।

"उस कामुक व्यापारी की बात सुनकर कामिनी कहती है -"अरे मूर्ख व्यापारी में, तुम जैसे कुरूप पुरुषों के हाथों नग्न होने से उत्तम आग में जलकर खाक हो ना उचित समझती हूं और जिस मूर्ख युवती का झांसा देकर तुम, मुझे भावनाओं में फुसलाना चाहते हो , वह मेरी दासी है, इस दासी का यह कर्तव्य था कि यह अपने प्राणों की आहुति देकर मेरी रक्षा करें, सो इसने किया भी, मैंने कुटिलता और छल शास्त्रों का ध्यान पूर्वक अध्ययन किया है, इसलिए मुझे भावनाओं में बहलाने की कोशिश मत करो, मैं स्वयं गणिका हूं, इसलिए किसी के प्रति प्रेम और करुणा मुझमें नहीं है और ना ही इसकी भी कोई चिंता करती हूं, तुम्हें जो व्यवहार इस सुंदर कन्या के साथ करना है, वह तुम करो, मैं चलती हूं और जाने से पहले तुम्हें एक ऐसी औषधि देती हूं, जिसके सेवन से तुम पुरुषों की कामुक ऊर्जा 16 वर्षीय युवक के समान हो जाएगी"।
कामिनी उन कामी पुरुषों को काम ऊर्जा की औषधि देकर अपनी नाव को आगे बढ़ाती है।

"आखिर क्यों कामिनी ने अपनी ही सखी रात्रि के साथ विश्वासघात किया"?

आखिर क्यों कमीनी ने अपनी ही सखी के शरीर को रोंदने के लिए, उन कामी पुरुषों को काम ऊर्जा की औषधि दी"?

"क्या सच में कमीनी इतनी स्वार्थी है या यह उसकी कोई चाल है"?

"क्या घायल रात्रि, इन दरिंदो से, अपनी अस्मत बचा पाएगी"?

अपने सभी प्रश्न और सस्पेंस को जानने के लिए पढ़ते रहिए
"कामिनी एक अजीब दास्तां"

#लेखनी


#प्रतियोगिता


#chetanshrikrishna

   9
2 Comments

Art&culture

06-Mar-2022 12:53 AM

Achchi h

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Inayat

05-Mar-2022 06:15 PM

बेहतरीन पार्ट

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